आया मंगल पर्व, यज्ञमय होली का।
करो परस्पर तिलक, प्रेम की रोली का॥
होली में दुर्भाव झोंक दो, द्वेष, द्रोह, कुविचार फेंक दो।
मातृभूमि का तिलक लगाओ, हर पिछड़ों को गले लगाओ॥
बाँटों प्रेम प्रसाद, आज निज झोली का॥
दुष्ट होलिका की न चलेगी, अपने छल से वही जलेगी।
बन नृसिंह फिर प्रभु प्रकटेंगे, हिरण्यकश्यपु के हृदय फटेंगे॥
कहता यही पुकार, पर्व यह होली का॥
यज्ञ भावना सबमें जागे, भेदभाव सब डरकर भागें।
दुष्ट स्वार्थी पीछे जायें, जागृत आत्मा आगे आयें॥
उभरे नया स्वरूप, अनोखी होली का॥