जय देव- देव जय महादेव- योगी कहलाने वाले।
हे! त्रिपुर जलाने वाले- हे! रुद्र कहाने वाले॥
दुष्टों के तुम हृदय विदारक- डमरू बजाने वाले।
मन को संयत करने वाले- काम जलाने वाले॥ शिव
तुम त्रिशूलधारी भक्तों के- शूल मिटाने वाले।
दुःख दोष हटाने वाले- हे मुक्ति दिलाने वाले॥
माथे पर हैं चन्द्र विराजें- शान्ति बढ़ाने वाले। सुख
तुम पिशाच को, विषधर को भी- गले लगाने वाले॥
सिर पर गंगा पापनाशिनी- ताप मिटाने वाले।
सन्ताप मिटाने वाले- रसधार बहाने वाले॥
मुक्तक-
महादेव प्रभु आपका, भक्त करें गुणगान।
ऐसी कृपा करो प्रभु, हो जग का कल्याण॥
त्रिविध ताप इस जगत में, तीन भयंकर शूल।
त्रिपुरारी शिव कर कृपा, करें इन्हें निर्मूल॥