शिव का सुमिरन हर घड़ी, करना कराना चाहिए।
यों अशिव के संग से, बचना बचाना चाहिए॥
मान जा मन हर घड़ी, आठों पहर शिव ध्यान कर।
तोड़ रिश्ता अशिव से, भव पार होना चाहिए॥
क्यों अरे तू पड़ गया, चक्कर में माया जाल के।
सत्य, शिव, आनन्द में, मन को लगाना चाहिए॥
क्यों वियोगी की तरह तू, जल रहा सन्ताप से।
इस कुयोगी हृदय को, योगी बनाना चाहिए॥
मुक्तक-
चाहते बचना अशिव से, शिव का सुमिरन कीजिए।
हृदय अपना, सत्य, शिव, आनन्द से भर लीजिए॥