प्यार है यदि हमें राम के नाम से,
राम के काम करते चलो रात दिन।
जिसको लग जाये प्रभु काम की ही लगन,
वह कहीं और अपना लगाता न मन॥
भक्त बजरंग को प्यार था वास्तविक-
रात दिन राम के काम में जुट गये।
पूँछ में लग गई आग तो क्या हुआ-
इष्ट के काम में जम गये डट गये॥
प्यार जिसको किया वीर बजरंग ने-
बस उसी का किया कर्म से कीर्तन॥
पुण्य ही मानते थे जटायू जिसे-
वे भी करते रहे बस उसी काम को।
बिन कहे राम के काम में जुट गये-
देख पाये नहीं थे अभी राम को॥
पाप से जूझते पंख भी कट गये-
पर हटाये नहीं पुण्य पथ से चरण॥
वह जरा सी गिलहरी भरी भाव से-
बिन कहे राम के काम पर डट गई।
कर्म के कण उड़ेला करी सिन्धु में-
भावना भव्य निर्माण में जुट गई॥
क्या पता नाम उसने जपा या नहीं।
जा टिके किन्तु खुद राम जी के नयन॥
राम को तो जुबानी जमा खर्च से-
प्यार बिल्कुल नहीं प्यार है कर्म से।
इसलिए सिर्फ बातें बनायें न हम-
हो विमुख राम के काम युग- धर्म से॥
स्वर्ग के इस धरा पर सृजन के लिए-
देववत् हों हमारे सभी आचरण॥