देश के रणबाँकुरों! रण का समय है।
देवसंस्कृति दिग्विजय प्रण का समय है॥
आक्रमण पशु शक्तियों का हो रहा है।
देश विकृतिजन्य पीड़ा ढो रहा है॥
हर अशिक्षित दुष्प्रथाओं से कसा है।
शिक्षितों पर भोग संस्कृति का नशा है॥
सोच लो गंभीर चिन्तन का समय है॥ देव...॥
जूझना होगा अनय से प्राण- पण से।
और अब निर्लिप्त हो जीवन मरण से॥
दूध को पशुता चुनौती दे रही है।
पूत से कातर धरित्री कह रही है॥
प्राणपण से मातृ अर्चन का समय है॥ देव...॥
देव संस्कृति का पुनः विस्तार करने।
मनुजता में प्राण का संचार करने॥
बात युगऋषि की अरे! अब मान भी लो।
और कुछ संकल्प मन में ठान ही लो॥
बढ़ चलो सर्वस्व अर्पण का समय है॥ देव...॥
हैं किये जन मुक्ति हेतु प्रयास हमने।
क्रान्ति के अगणित रचे इतिहास हमने॥
राष्ट्र को फिर विश्वगुरु का मान देने।
विश्व को अध्यात्म का शुभ ज्ञान देने॥
आज प्रतिभा के समर्पण का समय है॥ देव...॥
मुक्तक-
आज बज उठी रणभेरी, नवयुग के निर्माण की।
उठो साथियों लिखो कहानी, त्याग और बलिदान की॥