जन्म शताब्दी वर्ष आ गया, युगऋषि की सन्तानों।
गुरु के श्रेष्ठ शिष्य हो तुम, निज गुण- गरिमा पहचानों॥
काम न ऐसा करें, आत्मा जो हमको धिक्कारे।
ऐसा काम करें जनहित का, गुरुवर हमें दुलारें।
केवल वाणी नहीं आचरण से, अपने को तुम जानो॥
गुरु ने तप- ऊर्जा दी हमको, जो अमृत की धारा।
लेकिन है दायित्व स्वयं का, हमने आज बिसारा।
दो अपना सहयोग बुद्धि, बल, धन से प्रतिभावानों॥
आत्म- साधना प्रबल बनाकर, गुरुवर तक पहुँचा दें।
युवाशक्ति हो जाये संगठित, ऐसा भाव जगा दें।
स्वर्ग धरा पर, उतरेगा फिर, अटल सत्य यह मानो॥
घर- घर ज्ञान हमें पहुँचाना, हो संकल्प हमारा।
हम बदलेंगे -- युग बदलेगा, यही हमारा नारा।
रहे दृष्टि केवल मंजिल पर, कुछ करने की ठानो॥
मुक्तकः-
जन्मशताब्दी वर्ष सामने, अनुपम समय विशेष है।
गुरुवर छाये जड़- चेतन में, गुरुवर ही सर्वेश हैं॥