गीत संजीवनी-5

तुम्हारी शपथ हम

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तुम्हारी शपथ हम निरन्तर तुम्हारे-
चरण चिन्ह की राह चलते रहेंगे।
करेंगे तुम्हारे हरेक स्वप्न पूरे-
उसी यत्न में पग मचलते रहेंगे॥

ही युग- पुरुष आज जिसने गलाया-
मनुज के लिए बीज सा ही स्वयं को।
अन्धेरा मरण का भला क्या करेगा-
कि जिसने मिटाया सघन घोर तम को॥
तुम्हारी शपथ हम सभी अंकुरित हों-
सदा सत्य बनकर निकलते रहेंगे॥

तुम्हारा लिये स्नेह अपने हृदय में-
कभी आँधियों में प्रकम्पित न होंगे।
तुम्हारी किरण बाँटते हम रहेंगे-
किसी कार्य में हम विलम्बित न होंगे॥
तुम्हारे जलाये दिये हम सभी हैं-
तुम्हारी शपथ रोज जलते रहेंगे॥

नगर गाँव घर- घर चले जायेंगे हम-
लिए चेतनापूर्ण चिन्तन तुम्हारा।
जहाँ पा सके प्रेरणामय सन्देशा-
हरेक राष्ट्र हर जाति जन- जन तुम्हारा॥
निमिष भर नहीं देर अब हम करेंगे-
न अब और संकल्प टलते रहेंगे॥

तुम्हारी बताई हुई राह पर ही-
अँधेरी निशा को किरण मिल सकेगी।
कि निष्प्राण होने लगी जो मनुजता-
तभी फूल जैसी पुनः खिल सकेगी॥
तुम्हारी शपथ हम इसी पर चलेंगे-
न अब हम दिशायें बदलते रहेंगे॥

मुक्तक-

तुम्हारी चेतना से, प्रेरणा पाते रहेंगे।
तुम्हारी प्रेरणा से, उछालें खाते रहेंगे॥
बताया लोक- मंगल पथ, चलेंगे हम निरन्तर।
शपथ को प्राण देकर भी, निभाते हम रहेंगे॥

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