गीत संजीवनी-7

नई शक्ति दूँगा

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नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा।
कि युग को नयी एक अभिव्यक्ति दूँगा॥
जगा देश सारा मिटी कालिमा है गगन में छिटकने लगी लालिमा है।
निशानाथ सोये, जगा अंशुमाली, पथिक ने नये लक्ष्य की राह पाली॥
प्रगति पन्थ पर वेग से बढ़ चले जो, करोड़ों पगों को नयी शक्ति दूँगा।
नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा............॥
न होगा कभी दृष्टि से लक्ष्य ओझल, मनोबल हमारा बनेगा सुसम्बल।
अथक शक्ति ले पग हुये आज गतिमय, झुकेगा किसी दिन इन्हीं पर हिमालय॥
धरा पर नया स्वर्ग बसकर रहेगा, मनुज को विवशताओं से मुक्ति दूँगा।
नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा............॥
मनुजता न रुकती कभी आँधियों से, मनुजता सहमती न बर्बादियों से ।।
मनुजता ने चाहा वही करके छोड़ा, दनुजता से डरकर कभी मुँह न मोड़ा॥
शपथ ले उठी है, जवानी हमारी, नये देश को त्याग अनुरक्ति दूँगा।
नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा............॥
अभी कल्पना हो सकी है न पूरी, अभी साधना रह गयी है अधूरी।
अभी तो प्रगति का खुला द्वार केवल, अभी लक्ष्य में शेष है और दूरी॥
बिना लक्ष्य की प्राप्ति के जो न लौटे, उन्हें मैं प्रखर शक्ति के व्यक्ति दूँगा।
नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा............॥

विश्व संगीतमय है, संगीत ही इसकी प्रेरणा और प्राणशक्ति है। यह तत्व इतना महत्त्वपूर्ण और शक्तिसम्पन्न है कि इसके उपयोग से हम मृत्यून्मुख जीवन को अमरत्व की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
 -पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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