गीत संजीवनी-8

बदला जाये दृष्टिकोण

<<   |   <   | |   >   |   >>
बदला जाये दृष्टिकोण यदि, तो इन्सान बदल सकता है।
दृष्टिकोण के परिवर्तन से, अरे! जहान बदल सकता है॥

कुछ भी नहीं असम्भव होता, जब संकल्प किये जाते हैं।
संकल्पों को जब साहस के, गतिमय चरण दिये जाते हैं॥
बाधाओं की क्या बिसात फिर, रुख तूफान बदल सकता है॥

आसमान किसको क्या कहता, धरती किसको टोका करती।
मंजिल दूर भगाती किसको, गति कब किसको रोका करती॥
सबको ही प्रकाश देने से, क्या दिनमान बदल सकता है॥

लेकिन हम ही नहीं बदलते, घिसा- पिटा जीवन जीते हैं।
ताना- बाना बुना न जाता, फटी हुई चादर सीते हैं॥
मन चाहे ही परिधानों को, चाहे प्राण बदल सकता है॥

युग परिवर्तन की बेला में, आओ दृष्टिकोण हम बदलें।
गंगा के प्रवाह सा बहने- जीवन की धारायें बदलें॥
शापित जनमानस का फिर तो, भाग्य विधान बदल सकता है॥
अगर ज्ञान का सूर्य उदय हो,नवल विहान बदल सकता है॥

मुक्तक-

धरती वही पुरानी, आकाश भी वही है।
वे ही हैं चाँद सूरज, बदलाव कुछ नहीं है॥
है सिन्धु तो वही पर, लहरें बदल गयी हैं।
हैं तो वही नज़ारे, नज़रें बदल गयी हैं॥
नज़रें तेरी बदलीं तो, नज़ारे बदल गये।
किश्ती ने मोड़ा रुख तो किनारे बदल गये॥

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118