गीत संजीवनी-8

बसायें एक नया संसार

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बसायें एक नया संसार- कि जिसमें छलक रहा हो प्यार॥

शोषक शोषित हो न जहाँ पर- सबकी सम्पत्ति एक।
हो तन मन में सुमन एक सा- जिसमें प्रेम विवेक॥
हो सबमें सहयोग परस्पर- एक बने घर द्वार॥
कि जिसमें छलक.........॥

जाति,पाँति के बन्धन टूटें- राष्ट्र सब एक।
धर्मों में हो सत्य समन्वय- रहे न झूठी टेक॥
मिटें अन्धविश्वास जगत के- हों विज्ञान विचार॥
कि जिसमें छलक.........॥

मानव- मानव की भाषा हो- सबकी एक समान।
मिलें हृदय से हृदय परस्पर- हो सच्ची पहचान॥
करें वचन से तन, मन,धन से- सब सबका उपकार॥
कि जिसमें छलक.........॥

करें अहिंसा का पालन सब- बने सत्य का राज।
सत्य, अहिंसा भक्त सभी हों- जग हो सत्य समाज॥
घर- घर स्वर्ग नचे आँगन में- मोक्ष धरे अवतार॥
कि जिसमें छलक.........॥

मुक्तक-

बिगड़ती जा रही दुनियाँ- नई दुनियाँ बसाना है।
स्नेह, सहयोग, श्रम की सुरसरि- फिर से बहाना है॥
जगा देवत्व मानव का- बनायें देव मानव को।
मनुज की इस धरा को- स्वर्ग जैसा ही बनाना है॥

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