बिलख रहे होते सारे प्राणी- कहीं न कोई भी चैन पाता।
न प्यार होता न प्रीति होती- अगर कहीं तुम न होती माता॥
तुम्हीं से धरती ने प्यार पाया-
तुम्हारी करुणा से जग नहाया।
तुम्हीं ने आँचल से पय पिलाकर-
मनुज को इतना बड़ा बनाया॥
भटक रही होती तम में दुनियाँ-
कहीं उजाला नज़र न आता॥ अगर कहीं तुम...॥
दृगों से तेरे ही नीर झरकर-
है बन गया दूरतम समन्दर।
हवाओं में गूँजता सदा ही-
तुम्हारी करुणा का दिव्य निर्झर॥
कभी न बदले में कुछ भी माँगा-
पवित्र कितना है तेरा नाता॥ अगर कहीं तुम...॥
मलिन हृदय में न भाव किञ्चित-
तथापि चरणों में हम समर्पित।
बड़ी अधूरी है मेरी पूजा-
जो कुछ भी है माँ तुम्हें समर्पित॥
गिरे हुओं को उठा लो जननी-
न कोई तुम सा है और त्राता॥ अगर कहीं तुम...॥
मुक्तक-
भावों के अतिरिक्त हे माता, और करें क्या तुमको अर्पित।
माता के चरणों में हम सब, करते श्रद्धा सुमन समर्पित॥