गीत संजीवनी-9

महाकाल को नये सृजन का

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महाकाल को नये सृजन का, नव अभियान रचाना है।
नारी को फिर विश्व मंच पर, करतब नये दिखाना है॥

कीर्तिमान नारी के अगणित, उनका कौन करे लेखा।
इसकी सृजन शक्ति के आगे, देवों को झुकते देखा॥
अनुसुइया बनकर मन्दाकिनी को, धरती पर ले आयी।
सावित्री बन सत्यवान को, यम से सहज छुड़ा लायी॥
कहाँ खो गई वह गरिमा? अब, उसको पुनः जगाना है॥

राम बिना सीता लवकुश को, संस्कार दे सकती है।
कुन्ती बिना पाण्डु के भी, निज पुत्रों को गढ़ सकती है॥
शकुन्तला अपने बलबूते, भरत ढाल दिखलाती है।
मदालसा चारों पुत्रों को, जीवन मुक्त बनाती है॥
मातृशक्ति के बिना सृजन का, दिखता नहीं ठिकाना है॥

तर्क छिड़ा मण्डन- शंकर में, न्यायाधीश भारती थी।
युद्ध छिड़ा जब कृष्ण- पार्थ में, कृष्णा बनी सारथी थी॥
कहीं भामती मौन साधना से, सद्ग्रंथ लिखाती है।
कभी अहिल्याबाई बनकर, शासन तंत्र चलाती है॥
निज प्रतिभा से नये सृजन का, नव दायित्व निभाना है॥

भावशून्यता ने दुनियाँ को, नर्क बनाने की ठानी।
हृदयहीनता को आगे कर, ध्वंस कर रहा मनमानी ॥
महाकाल ने सृजन साधना का, अब शंख बजाया है।
इसीलिए सद्भाव मूर्ति, नारी को पुनः जगाया है॥
मातृशक्ति को नये सृजन में, प्रभु का हाथ बँटाना है॥

मुक्तक-

महाकाल ने नूतन युग को ‘‘नारी युग’’ का नाम दिया।
क्योंकि पुरुष के अहंकार ने, दंभ, द्वेष का काम किया॥
फिर से अनुसुइया, मदालसा, सीता, सावित्री चेतें।
क्योंकि पुरुष के पाप- पतन ने कलियुग को बदनाम किया॥
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