गीत संजीवनी-9

महकना फूल सी बनकर

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महकना फूल सी बनकर, कँटीली डाल पर खिल तुम।
निभाना लाज मर्यादा, सदा बहना पिता की तुम॥

ससुर हैं अब पिता तेरे, समझना सास को जननी।
जेठानी, देवरानी को, समझना पूज्य लघु भगिनी॥
पिता सम जेठ- देवर को, समझना प्रीति का धन तुम॥

ननद यदि रूठ भी जाये, मनाना तुम उसे हँसकर।
सदा रखना हृदय निर्मल, सभी से प्रेम निश्छल कर॥
रहें अनुचर सदा वश में, न करना क्रोध उन पर तुम॥

बड़ों की कर सदा सेवा, जताना प्यार छोटों पर।
हृदय देकर के तू पति का, निभाना साथ जीवन भर॥
बनाकर देवता उनको, दिखाना पन्थ उत्तम तुम॥

न सुख में फूल अति जाना, न दुःख में व्यग्र हो जाना।
सदा सन्तुष्ट रह करके, विजय के गीत नित गाना॥
बना करके सरस जीवन, मधुर रसधार भरना तुम॥

बढ़े सौभाग्य, कुलकीर्ति, ये शुभ हो कामना तेरी।
अमंगल दूर हों सारे, सफल हो साधना तेरी॥
बढ़े विश्वास, श्रद्धा, भक्ति का श्रृंगार करना तुम॥

न तजना संस्कृति अपनी, न तजना सभ्यता प्यारी।
जहाँ जाओ सुखी रहना, फलो- फूलो सुता प्यारी॥
अलंकृत सद्गुणों से रह, बिताना दिव्य जीवन तुम॥

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