युग की यही पुकार, बसन्ती चोला रंग डालो।
त्याग- तितिक्षा का रंग है यह, सुनो जगत वालों॥ -- बसन्ती चोला रंग डालो॥
इस चोले को पहन भगतसिंह, झूला फाँसी पर।
इस चोले का रंग खिला था, रानी झाँसी पर।
त्याग और बलिदान न भूलो, ऊँचे पद वालों॥
बासन्ती चोले को, भामाशाह ने अपनाया।
नरसिंह का चोला तो सबसे, अद्भुत रंग लाया।
इस चोले से बढ़े द्रव्य की, शोभा धन वालों॥
इसे पहनकर हरिश्चन्द्र ने, सत्य नहीं छोड़ा।
चली अग्नि पथ पर तारा ने, पहना यह चोला।
मानवीय गरिमा न भुलाओ, भटके मन वालों॥
परमहंस के इस चोले को जिसने, अपनाया।
संस्कृति के झण्डे को जिसने, नभ तक फहराया।
अपने गौरव को पहचानो, युवा शक्ति वालों॥
भूल गये हम अपना पौरुष, गये अनय से हार।
हुए संकुचित हृदय हमारे, बन बैठे अनुदार।
लेकिन अब तो दिशा बदलकर, बढ़ो लगन वालों॥
मुक्तक-
बलिदानी! वीरों को, युग आवाज लगाता है।
आओ! फिर से बासन्ती, इतिहास बुलाता है॥
फिर से भारत के गौरव का, मान बढ़ाना है।
बासन्ती चोला हम सबको, शपथ दिलाता है॥