युग गायन पद्धति

युग- युग से हम खोज

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व्याख्या- दुनियाँ स्वर्ग निवासी भगवान की खोज युगों से कर रही है जो उसे आज तक नहीं मिला किन्तु दुनियाँ ने धरती पर ही निवास करने वाले सच्चे इन्सान को नहीं खोजा।

स्थाई- युग से हम खोज रहे हैं- सुरपुर के भगवान को।
किन्तु न खोजा अब तक हमने- धरती के इंसान को॥

हम सब ब्रह्मज्ञान की चर्चा तो बहुत करते हैं किन्तु दुष्कर्म करने से बाज नहीं आते और जब दुःख आता है तो राम को पुकारने लगते हैं किन्तु भोगवादी बने हुए रावण के ही साथी बने हुए हैं। देवताओं की पाषाण की बड़ी- बड़ी प्रतिमाएँ तो पूजते रहते हैं किन्तु धरती के सच्चे इन्सान की पूजा करना नहीं सीखे।

अ.1- चर्चा ब्रह्मज्ञान की करते- किन्तु पाप से तनिक न डरते।
राम नाम जपते हैं दुःख में- साथी हैं रावण के सुख में॥
लकड़ी पूजी लोहा पूजा- पूजा है पाषाण को॥

कथा, भागवत सुनते समय शबरी, केवट की कथा सुनकर आँसु बहाने लगते हैं किन्तु भगवान को भोग लगाते समय यदि कोई भूखा आ जाात है तो उसे दुत्कार कर भगा देते हैं भक्त बने हुए छापा तिलक तो लगाते हैं, पर मन के अंदर दुर्भावों के रूप में शैतान ही बैठा हुआ है।

अ.2- शबरी केवट के गुण गाये- खूब रीझकर अश्रु बहाये।
पर जब हरि को भोग लगाया- तब सबको दुत्कार भगाया॥
तिलक लगाकर अपने उर में- पाला है शैतान को॥

मंदिरों, मस्जि़दों, गिरजो में हम भगवान को खोजते रहे और न जाने कितने देवता बना डाले, परमात्मा को पाने के लिए। किन्तु ईमान में, खेत- खलिहान में निवास करने वाले भगवान को नहीं खोजा। दुनियाँ के भोग साधनों को खोजते रहे पर इन्सान की खोज कहीं नहीं की।

अ.3- खोजे मंदिर मस्जिद गिरजे- अनगिनते परमेश्वर सिरजे
किन्तु कभी ईमान न खोजा- कभी खेत खलिहान न खोजा॥
दुनियाँ के मेले में देखा- नित्य नये सामान को॥

भजन कीर्तन कर हम जिस भगवान को खोज रहे वह तो दीन- दुखियों के क्रन्दन में छिपा हुआ है और हम दिन- रात धर्म की दुहाई देते रहे किन्तु दीनों- दुःखियों के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं किया और पैसा, प्रतिभा, वैज्ञानिक सुविधायें सब को प्राप्त करने के बाद भी सच्चे मानव को नहीं पा सके। अर्थात् हम सच्चे मानव न बन सके।

अ.4- खोजा हमने जिसे भजन में- छिपा रहा वह तो क्रन्दन में।
हमने निशदिन धर्म बखाना- लेकिन कर्म नहीं पहचाना॥
पैसा पाया प्रतिभा पाई- पाया है विज्ञान को॥

आइये हम अपने ही अन्दर छिपे बैठे देवता रूपी इन्सान को खोजे, उसे विकसित करे तो हमारा जीवन भी धन्य हो जाये और समय की माँग भी पूरी हो जाये। (पुनः स्थाई दुहरायें)
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