गीत संजीवनी-1

घर- घर अलख जगायेंगे

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घर- घर अलख जगायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना।
निश्चय हमारा, ध्रुव- सा अटल है।
काया की रग- रग में, निष्ठा का बल है॥
जागृति शंख बजायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना॥
बदली हैं हमने, अपनी दिशायें।
मंजिल नयी तय, करके दिखायें॥
धरती को स्वर्ग बनायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना॥
श्रम से बनायेंगे, माटी को सोना।
जीवन बनेगा, उपवन सलोना॥
मंगल सुमन खिलायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना॥
पीड़ा पतन की, तोड़ेंगे कारा।
ममता की निर्मल, बहायेंगे धारा॥
समता का दीप जलायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना॥
माता गायत्री की, हम पर है छाया।
अनुभव हम करते हैं, गुरुवर का साया॥
शुभ संस्कार जगायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना॥
मुक्तक-
ज्ञानज्योति लेकर गुरुवर की, द्वार- द्वार जायेंगे।
उनके चिन्तन की सुगन्ध हम, घर- घर फैलायेंगे॥
इसके लिए समय, श्रम, साधन, नियमित दिया करेंगे।
यूँ सूरज का काम रश्मियाँ, बनकर किया करेंगे॥    
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