करें छात्र निर्माण धरा
करें छात्र निर्माण, धरा को स्वर्ग बनाना है।
इन ईंटों पर ही नवयुग का, भवन उठाना है॥
छोड़ बड़प्पन का फूहड़पन, गुरुता वरण करें।
निष्ठुर नहीं बने मानव हैं, सद्आचरण करें॥
रामराज्य का सपना पूरा, कर दिखलाना है॥
त्याग, तपस्या की भट्टी में, व्यक्ति ढला करते।
स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन में ही, देव पला करते॥
विकृत मन को भस्मासुर सा, वर न दिलाना है॥
तप नरेन्द्र को ढाल, विवेकानन्द बना देता।
और मूल शंकर तप से ही, दयानन्द होता॥
उसी पुरातन परम्परा को, प्रखर बनाना है॥
युग प्रज्ञा ने फिर दहकाई, लो तप की भट्टी।
जहाँ देवता बन सकती है, मानव की मिट्टी।।
प्रज्ञायुग का भवन उठाने, ईंट पकाना है॥