मुक्तक-
भार जो सौंप कर चल दिये पूज्यवर, हम सपूतों सरीखे उसे ढोयेंगे।
तुम कभी भी न यह सोचना, हम उसे छोड़कर नींद में एक पल सोयेंगे॥
करें हम पात्रता विकसित
करें हम पात्रता विकसित, यही दो भावना गुरुवर।
लगन हो श्रेष्ठ कार्यों में, यही है कामना गुरुवर॥
नहीं विचलित कभी होवें, हमें वह बुद्धि दे देना।
हमारे आप रक्षक हैं, हमें विश्वास यह देना॥
हृदय हो प्रेम का सागर, यही है कामना गुरुवर॥
लगन हो कार्य में, एकाग्रता पाते चले जाएँ।
कृपा से आपकी हम, श्रेष्ठता लाते चले जाएँ॥
बना दो बुद्धि को निर्मल, यही है कामना गुरुवर॥
न धन सत्ता का लालच है, न पद वैभव की इच्छा है।
न इस भौतिक जगत में, नाम पा जाने की इच्छा है॥
सभी के दुःख बँटा पाएँ, यही है कामना गुरुवर॥
बहुत जन्मों में भटके हैं, तुम्हें ढूँढ़ते गुरुवर।
मिली है आत्मा को तृप्ति, अब पाकर तुम्हें ऋषिवर॥
मिटा दो सब कलुषता को, यही है प्रार्थना गुरुवर॥
तुम्हारे पुत्र- पुत्री बन, सदा शुभ मार्ग अपनाएँ।
सजलता माँ से पाने को, सदा से मन मचल जाए॥
रहे सानिध्य में हर पल, यही है कामना गुरुवर॥