करेंगे प्रज्ञा से सहकार
करेंगे प्रज्ञा से सहकार, उठायेंगे मिल- जुलकर भार।
कि इस भू- पर फिर से एक नया संसार बसायेंगे॥
सागर सूरज तपे साथ में, भाप बने सहकार।
बादल बनकर बरस गये, फिर सुखी हुआ संसार॥
बढ़ी है फिर धरती की प्यास, हुआ जन मानस आज उदास।
कि- हिल मिलकर ही हम, स्नेह भाव की वर्षा लायेंगे॥
अपनी- अपनी स्वार्थ सिद्धि में, हुआ आज बिखराव।
राग द्वेष बढ़ रहा- बढ़ रहा, मानव बीच तनाव।
भूलकर जनहित वाला त्याग, गा रहे अपना- अपना राग॥
कि लड़- लड़कर कर हम आपस में ही क्या कट- मिट जायेंगे॥
लड़ना है तो लड़े अनय से और करें प्रतिकार।
मन्यु जगायें जो अनीति को दे पाये ललकार॥
मिलायें राम और हनुमान, कृष्ण का शंख पार्थ के बाण।
कि युग संकट- २ से हम त्रस्त, मनुज के प्राण बचायेंगे॥
भामा को प्रताप से फिर से, करना है सहकार।
चन्द्रगुप्त चाणक्य एक हों, बदले युग की धार।
जुटाकर शक्ति और सहयोग,ब्रह्मबल और छात्र बल योग।
कि हम युग की- २ उलटी धार, पलट करके दिखायेंगे॥