कर्म वृक्ष बन लहराता है
(तर्ज- उठो सुनो प्राची से उगते)
कर्म वृक्ष बन लहराता है, चिन्तन का ही बीज।
चिन्तन पर दें ध्यान, न आये फिर कर्मों पर खीज॥
दुश्चिंतन के कारण ही, दुष्कर्म किये जाते।
सदचिन्तन के अंकुश से, सद्कर्म जन्म पाते हैं॥
चिन्तन के ऊपर निर्भर है, क्रम उत्थान पतन का।
क्षुद्र महान स्वरूप निखरता, इससे ही जीवन का॥
यही गिराते पतन गर्त में, और स्वर्ग क्या चीज॥
अन्य वस्तुओं के अभाव से, क्षति शरीर की होती है।
किन्तु अभाव ज्ञान का हो तो, कष्ट आत्मा ढोती है॥
बिना ज्ञान नर पशु बन जाते, तब मानव तनधारी।
किन्तु ज्ञान का पारस छू, वे देवों के अधिकारी॥
चिन्तन में यदि संवेदन हो, जाता हृदय पसीज॥
चिन्तन प्रेम भरत को, कौरव को लड़ना सिखलाता।
सद्चिन्तन से दुश्चिंतन से, यह अन्तर हो जाता॥
इसने ही गौतम गाँधी को, करना प्रेम सिखाया।
इसके कारण ही हिटलर ने, कत्लेआम मचाया॥
क्रूर इसी से रावण बनते, राम इसी से रीझ॥
जब दस्तक दे रही द्वार पर, युग विभीषिका भाई।
और विसंगति दे समाज में, जब कि भ्रान्ति फैलाई॥
युग के दृष्टिकोण में ऐसा, परिवर्तन लाना है।
जिन उत्कृष्ट विचारों द्वारा, युग बदला जाना है॥
दुश्चिंतन का रोग नष्ट हो, होवे स्वस्थ मरीज॥