क्या हो गया प्रकाश पुत्र
क्या हो गया प्रकाश पुत्र को, अंधकार स्वीकार कर लिया।
तम से समझौता कर डाला, तम को नातेदार कर लिया॥
हर प्रकाश का पुत्र सुना है, अंधकार को पी लेता है।
फिर प्रकाश का पुत्र किस तरह, अंधकार में जी लेता है॥
कैसी है विडम्बना तम को, जीवन का आधार कर लिया॥
तम का बन्दी बने जनों को, मुक्ति दिलाने चल पड़ता था।
वैसे भी तम के घेरे में जो, अनवरत जला करता था॥
तम का बन्दी बनने से फिर, क्यों न स्वयं इन्कार कर दिया॥
जो अथाह तम में डूबों को, बाहर ले आया करता था।
तम के तूफानों से जिसका, साहस टकराया करता था॥
तम से हार मान बैठा क्यों? क्यों तम को मझधार कर लिया॥
जो प्रकाश बाँटा करता था, उसके घर आँगन में तम है।
फिर कैसे हर घर आँगन में, तम ने क्यों अधिकार कर लिया॥
प्रकाश के घर आँगन में, तम ने अब अधिकार कर लिया॥
ओ प्रकाश के पुत्र हृदय की, ज्योति तनिक उकसाकर देखो।
अपने कंधों से अनचाहे, अंधकार का जुआ फेंको॥
तुमने घोर अमावस में भी, तो तम का प्रतिकार कर लिया॥
स्नेह भरो मन के दीपक में, जलने दो जीवन की बाती।
जन- जन को प्रकाश फिर बाँटे, जीवन ज्योति सहज मुस्काती॥
क्या कर लेगा अंधकार अब, जल मरना स्वीकार कर लिया॥