मुक्तक-
प्रभो! तज दोष दुर्गुण, दुर्व्यसन कल्याण कब होगा।
विकारों वासनाओं से, ग्रसित का त्राण कब होगा॥
बनेंगे सद्विवेक कब, करेगे शांति कब धारण।
पतित पावन पतित को तारने पर ध्यान कब होगा॥
क्या तन माँजता है रे
क्या तन माँजता है रे, एक दिन माटी मे मिल जाना।
बना ठना घूमा जीवन भर, तन को खूब सजाया।
नाशवान को सब कुछ माना, सत्य समझ ना पाया॥
क्रूर काल झपटा तब रोया, साथ नही कुछ जाना॥
आत्मा का संतोष न खोजा, खोजा सुख काया का।
अन्त समय तक समझ न आया, चक्कर यह माया का॥
कितना भी हो मोह लाश से, होगा उसे जलाना॥
पुण्य साथ जा सकता था पर, यह तो नही कमाया।
लक्ष्य न समझा भ्रम में भटका, हीरा जन्म गँवाया॥
माटी के टुकड़ों में बेचा, यह अनमोल खजाना॥
बीत गई सो बात गयी, तकदीर का शिकवा कौन करे।
जो तीर कमान से निकल गया, फिर उसका पीछा कौन करे॥
संगीत तीन भागों में विभक्त हैं- गायन, वादन और नृत्य। ये तीनों ही शरीर, मन और आत्मा को प्रभावित करते हैं।