बल प्राण प्रकाश सभी
बल प्रकाण प्रकाश सभी, सविता से पाते हैं।
ओजस्, तेजस्, वर्चस्, साधक से पाते हैं॥
हमको भी प्रभु सविता, साधन का बल देना।
साधना मार्ग का भी, संबल साहस देना॥
बालक हाथ पकड़, पितु- मातु चलाते हैं॥
मन चंचल है भगवन, वह साधन क्या जाने।
मन तो अपनाता है, केवल पथ मनमाने॥
शुभ चिन्तक माता- पिता, सन्मार्ग बताते हैं॥
संयम को साध सकें, वह प्राण हमें देना।
दोषों से दुर्गुण से, प्रभु त्राण हमें देना॥
हम सभी आपसे ही, अब आश लगाते हैं॥
जनहित में जीवन को, अर्पित करना आये।
साँसें, श्रम, साधन सब, जनहित में लग जाये॥
अन्यथा जिन्दगी के, क्षण बीत जाते हैं॥
जब सहज अँधेरा ने, जग पथ को घेरा है।
पीड़ित जन- मानस ने, सविता को टेरा है॥
तब- तब प्रकाश देकर, पथ आप दिखाते हैं॥