बनो एक सब मिल
बनो एक सब मिल विषमता मिटाओ।
जगो तुम स्वयं राष्ट्र को भी जगाओ॥
अगर फूट हम में परस्पर न होती,
न यह भेद अथवा छुआछुत होती॥
जकड़ती हमें क्यों भला यों गुलामी,
रहे हम हमेशा अखिल विश्व स्वामी॥
बढ़े शक्ति फिर एकता को बढ़ाओ॥
प्रकृति भी नहीं भेद करती किसी से,
लुटाती सहज सम्पदायें खुशी से।
पवन, ज्योति, जल बाँटती है बराबर,
किसी जीव तक का न होता निरादर॥
करें भेद हम फिर भला यों बताओ॥
मनुज में करे भेद क्यों जाति या धन,
करे स्वार्थ के द्वेष के क्रूर बन्धन।
हटे देश से शीघ्र सारी विषमता,
हटे यदि हमारे हृदय से कृपणता॥
गिरे हैं उन्हें अब हृदय से लगाओ॥
सभी को प्रगति के मिले शुभ अवसर,
परिश्रम करें हम सभी जोश भरकर।
बढ़ायें कदम से कदम सब मिलाकर,
बनायें नया देश हम आत्म निर्भर॥
दिलों में सभी स्नेह का रस बहाओ॥