बुढ़ापा आ गया कैसे
बुढ़ापा आ गया कैसे, जवानी क्यों नहीं आयी।
अरे गतिरोध क्यों आया, रवानी क्यों नहीं आयी॥
सुबह की रोशनी पीकर, किरण की जिन्दगी जीकर।
ऊषा का तेज मुस्काया, प्रभा का रूप अँगड़ाया।
मनुज के गाँव में मधुऋतु, सुहानी क्यों नहीं आयी॥
सुधा की धार में रहकर, लहर के प्यार में रहकर।
बने क्यों रेत ढह ढहकर, उमड़ते ज्वार के सहचर।
अमृत के घूँट पीने जिन्दगानी, क्यों नहीं आयी॥
समूचा स्वर्ग आ पहुँचा, स्वयं अपवर्ग आ पहुँचा।
लिए मधु तेज की काया, पिछलता भर्ग आ पहुँचा।
हृदय के शून्य मंदिर में, भवानी क्यों नहीं आयी॥
नदी जलनिधि बनी चलकर, किरण हँसने लगी जलकर।
घटा पर बीज की लघुता, सफल टहनी बनी गलकर।
तुम्हें उर दीप की बाती, जलानी क्यों नहीं आई॥
संगीत ही क्या, समस्त सृष्टि क्रम में एक अपूर्व ताल व्यवस्था अर्थात् काल की नियमितता दृष्टिगोचर होती है।