मुक्तक-
हमें वह शक्ति दो प्रभु प्रेम की, दुनियाँ बसायें हम।
स्नेह, सहकार, श्रम को, मंत्र जीवन का बनायें हम॥
दम्भ, द्वेष से छल छद्म से चिन्तन न विकृत हो।
समय, श्रम, साधनों को लोक- मंगल में लगायें हम॥
पिछले युग की बातें
पिछले युग की बातें, हो गई बहुत पुरानी।
हम सबको करनी है फिर से, नवयुग की अगवानी॥
हम युग निर्माणी- हम युग निर्माणी॥
नये सृजन की प्रबल तरंगें, हमको आज जगानी।
हम युग निर्माणी- हम युग निर्माणी॥
सता रही दुर्बुद्धि साथ अब उसको छोड़ो।
राह रोकने खड़ी रूढ़ियाँ उनको तोड़ो॥
लोभ- मोह में रुक जाने का समय नहीं है।
भय से दुःख से झुक जाने का समय नहीं है॥
महाकाल के संग चलने की, हमने मन में ठानी॥
अब दुर्बुद्धि मनों में हम पलने न देंगे।
दुर्भावों की कुटिल चाल चलने न देंगे॥
परिष्कार मन का अब सबको कर लेना है।
और हृदय में दिव्य भावना सबको भर लेना है॥
मानव में है देवो जैसी पावन ज्योति जगानी॥
भेदभाव की द्वेष दम्भ की खैर नहीं है।
है अनीति से युद्ध किसी से बैर नहीं है॥
दैवी सांचे में हम सबको ढलना होगा।
बिना रुके उज्ज्वल भविष्य तक चलना होगा॥
बढ़ो हमारे साथ चल रही है युग शक्ति भवानी॥