प्रभु चरण तुम्हारे पड़े जहाँ
प्रभु चरण तुम्हारे पड़े जहाँ, है तीर्थ हमारा वहीं वहीं।
जीवन यह नाथ तुम्हारा है, अधिकार हमारा कहीं नहीं॥
तुमने तप किया भगीरथ सा, प्रज्ञा प्रवाह भू- पर लाये।
सबको अधिकार प्रदान किया, जो करे साधना खुद पाये॥
समता, ममता पूरित ऐसा, अनुदान जगत में कहीं नहीं॥
हे वेदमूर्ति! तुमसे जग को, फिर से जीवन की कला मिली।
भ्रम- भटकावों से मुर्झायी, सूखी हर मन की कली खिली॥
सूखे मरुथल थे जहाँ जहाँ, रस धार बहायी वहीं वहीं॥
हम हीन स्वार्थ में डूबे थे, तुमने कर कृपा उबार लिया।
सत्कर्मों की फैली सुगन्ध, ऐसा पावन युग यज्ञ किया॥
जो कर्म तुम्हें प्रिय हैं ऋषिवर, कर्तव्य हमारा वहीं वहीं॥
भटके अटके मन वालों को, जीवन की विद्या दी प्यारी।
दुनियाँ के ताबेदारों को, दी ईश्वर की साझेदारी॥
जो युक्ति सिखा दी जीवन की, है मुक्ति हमारी वहीं वहीं॥
आस्थाहीनों ने दुनियाँ को, बर्बादी तक पहुँचाया है।
फिर नयी आस्था दे तुमने, उज्ज्वल भविष्य दिखलाया है॥
तुम महाकाल बनकर आये, है जोड़ तुम्हारा कहीं नहीं॥