प्रतिभाओं तुमको क्रान्ति
प्रतिभाओं तुमको क्रान्ति रण, भेरी बजानी है।
नई तस्वीर भारत देश की, फिर से बनानी है॥
जगत्गुरु की पुनः आध्यात्मिक सामर्थ्य जागेगी।
समूचे विश्व को आध्यात्मिक मधुरस चखा देगी॥
धर्म की चेतना फिर विश्व मानव में जगानी है॥
सिखाकर आत्मविद्या मनुज को जीना सिखाना है।
आत्मघाती- अतिविद्या मनुज को जीना सिखाना है॥
तेन त्यक्तेन भुञ्जिथा, विद्या सबको सिखानी है॥
न हो विज्ञान विध्वंसक सृजन के गीत ही गाएँ।
स्नेह सहकार की दुनियाँ, बसा मिल बाँटकर खाएँ॥
सादगी- उच्च विचारों की, नई दुनियाँ बसानी है॥
जगाने सुप्त जन- मानस जरूरत प्राणवानों की।
और प्रतिभा की आहुति लोकमंगल में चढ़ाने की॥
सृजन में प्रतिभाओं अपनी प्रखर प्रतिभा लगानी है॥