बहनों अपनी शक्ति
बहनों अपनी शक्ति जगाकर, जुट जाओ निर्माण में।
संस्कृति का सौभाग्य छिपा है, नारी के उत्थान में॥
जब तक शक्ति तुम्हारी सोई, दिखा सकेगा राह न कोई।
नवयुग के संकल्प अधूरे, होंगे सब तुमसे ही पूरे॥
सद्विचार हो तुम्हीं कर्म में, आत्मतत्व विज्ञान में॥
तुमने निज वर्चस्व गँवाया, रूप रंग को लक्ष्य बनाया।
देवी अंश नहीं पहचाना, अस्ति चर्म ही सब कुछ जाना॥
विज्ञापन ने शील तुम्हारा, सजा दिया दुकान में॥
लोलुप नर ने ही गुण गाकर, कठपुतली सा तुम्हें सजाकर।
भोग्या कहीं बनाया दासी, सब ले डूबे अंध विश्वासी॥
जब तक तुम न स्वयं चेतोगी, संशय है कल्याण में॥
ज्ञानयज्ञ की ज्योति सम्भालो, जड़ता में नव जीवन ढालो।
जागे दिव्य क्रान्ति चिनगारी, कर दो भस्म विकृतियाँ सारी॥
स्वस्थ सृजन का शंख बजा दो, जागृति के अभियान में॥
मुक्तक-
उठो उठो हे! मातृशक्ति अब, समय प्रभाती सुना रहा है।
ओ देवी! दुर्गे तुम्हीं हो नारी, तुम्हारा गौरव बुला रहा है॥