बुला रही है भारत माता
बुला रही है भारत माता, अपने वीर जवानों को।
हो जाओ तैयार पुनः अब, नव परिवर्तन लाने को॥
विश्व गुरु था देश हमारा, जग को ज्ञान लुटाता था।
सोने की चिड़िया उड़ती थी, धर्म ध्वजा फहराता था॥
सोई शक्ति पुनः जगाओ, दीपक बुझा जलाने को॥
एक समय आया था ऐसा, आजादी हथियाने का।
‘इन्कलाब’ का स्वर गूँजा था, फाँसी गले लगाने का॥
वही चुनौती पुनः जगी है, माँ का दर्द चुकाने को॥
माँ बहनों की इज्जत लुटती, गली- गली हर गाँव में।
आतंकों की आग धधकती, काश्मीर है दाँव में॥
संघर्षों का समय है साथी, जमकर शौर्य दिखाने को॥
सेवा और सद्भाव भरा था, भारत के जन जीवन में।
कथनी करनी का प्रण पूरा, होता था निज जीवन में॥
आज जरूरत पुनः पड़ी है, भूले भाव जगाने को॥
ऊँचा हो निज देश का मस्तक, ऐसा कुछ निर्माण करो।
जन- जागृति का शंख बजाकर, जन- जन से आहवान करो॥
भेदभाव और जातिवाद को, ले जायें दफनाने को॥