बुने रे मन क्यों ताना बाना
बुने रे मन क्यों ताना बाना।
सफर में खाली ही जाना, साथ में क्या ले जाना॥
इतनी आपा- धापी करता, पेट नहीं भोगों का भरता।
तन का नहीं ठिकाना, पीछे मत पछताना॥
अमृत पीने में सुख पाता, विष पीने में क्यों घबराता।
करना नहीं बहाना, जहर भी पीते जाना॥
पथ में राही नहीं अटकना, आकर्षण में नहीं भटकना।
कहीं न मिले ठिकाना, मंजिल तय कर जाना॥