माँग रही है देव संस्कृति
माँग रही है देव संस्कृति, निष्ठावानों से कुर्बानी।
देवभूमि की शपथ उठाकर, आगे बढ़ो वीर बलिदानी॥
शीश चढ़ाकर कभी सपूतों ने, माटी का कर्ज चुकाया।
भेंट चढ़ा निज पति पुत्रों को, महिलाओं ने फर्ज निभाया॥
आज माँगता महाकाल बस, समय तनिक सा प्रतिभाओं से।
स्वार्थ घटा, परमार्थ साधना है थोड़ी निज क्षमताओं से॥
समय और श्रम से रचनी है, नये सृजन की नई कहानी॥
वीर भूमि की सन्तानों तुम, कायर बन मत पीठ दिखाना।
रत्न प्रसूता माताओं तुम अरे कोख को नहीं लजाना॥
परिवारों से एक व्यक्ति यदि, सृजन वीर बन आ जायेगा।
तो अपना गौरव इस जग में, प्राण प्रतिष्ठा पा जायेगा॥
भय मत करना साथ हमारे हैं, रक्षक युगऋषि वरदानी॥
यदि विज्ञान- सभ्यता दोनों से, मानव का हित करना है।
अगर ध्वंस का चक्र काटकर, फिर उज्ज्वल भविष्य रचना है॥
तो संस्कृति का गौरव फिर से, सारे जग को समझाना है।
देव संस्कृति के सूत्रों को फिर, जन- जन तक पहुँचाना है॥
लोभ मोह से ऊपर उठकर, आओ बनें सृजन सेनानी॥
संगीत ने मानवीय गुणों में प्रेम और प्रसन्नता बढ़ाई है।