मुखरित गायत्री हर स्वर में
मुखरित गायत्री हर स्वर में,
फिर और को नाम लियो न लियो।
सद्बुद्धि की जननी बसी उर में,
फिर और को ध्यान कियो न कियो॥
जग- जननी ने जब गोद लिया, माँ प्रज्ञा का पय पान किया।
अमृत निर्झरणी अन्तर में, कोई रस धार पियो न पियो॥
सद्ज्ञान की ज्योति जलाई जब, तम कोहर, घर पहुँचाई जब।
सद्ज्ञान दियो जब तम हरने, फिर स्वर्ण को दान दियो न दियो॥
जीवन जन मंगल में अर्पित, दीनों दुखियों संग संवेदित।
परमार्थ सधे यदि पल भर में, फिर वर्ष हजार जियो न जियो॥
युग पीड़ा से करुणा छलके, घावों पर संवेदन ढलके।
आध्यात्मिक टीस बसे उर में, सुख भोग को ध्यान कियो न कियो॥
आओ नैतिक निर्माण करें, जन जीवन में विश्वास भरें।
नैतिकता हो नारी नर में, भौतिक निर्माण कियो न कियो॥
हमें सबसे पहले अपनी जिह्वा को वश में करने की साधना करनी चाहिए। इससे आरोग्य और अनेक विकारों पर विजय मिलती है। - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य