तेरी करुण कराह
तेरी करुण कराह हमारे, कानों से टकराई।
वीर देश की माटी हमने, तेरी शपथ उठाई॥
इस माटी को ऋषियों ने, निज तप से कभी सँवारा।
भागीरथ ने इसी भूमि पर, था जाह्नवी उतारा॥
ओ रावी तट की माटी, तूने इतिहास गढ़ा है।
वही प्यार फिर से प्राणों में, बनकर ज्वार चढ़ा है॥
तेरे हर कण में अणुबम की, देती शक्ति दिखाई॥
यह संस्कृति की सेतु विश्व को, जिसने ज्ञान दिया है।
इसने ही मानवी आस्था, को सम्मान दिया है॥
ढेर हड्डियों का जब देखा, उसने क्रोध किया है।
भुजा उठाकर प्रण करने, वालों को जन्म दिया है॥
इस माटी की गौरव- गाथा, जाये नहीं भुलाई॥
बन्दा बैरागी ने इस, मिट्टी को शीश नवाया।
वीर भगत ने इस मिट्टी पर, हँस- हँस शीश चढ़ाया॥
इस हल्दीघाटी माटी पर, जूझ गये बलिदानी।
यही एक अपने गौरव की, बाकी बची निशानी॥
उसे समझकर मृत गिद्धों ने गर्दन आज उठाई।।
धरती के कोने- कोने तक, हम सबको जाना है।
इस माटी की देव संस्कृति, जग में फैलाना है॥
इस माटी के स्वाभिमान की, रक्षा सदा करेंगे।
एक बार की कौन कहे, तुझ पर सौ बार मरेंगे॥
यह निष्ठा की शपथ कभी भी, जाये नहीं भुलाई॥