थे सामने तो लखकर
(आँखें निहारती है गुरुवर)
थे सामने तो लखकर, खिलता था कमल मन में।
लेकिन सुदूर जाकर, मधु गंध बन गये हो॥
सुख दुःख सभी क्षणों में, संवेदना पिलाई।
होकर अदृश्य भी तुम, मधु छंद बन गये हो॥
थे सामने तो मन यह, दर्शन ही चाहता था।
प्रभु किन्तु दूर जाकर, उर स्वंद बन गये हो॥
दस लाख साथियों के, मन प्राण में बसे हो।
कुछ महारास जैसे, नंद- नंद बन गये हो॥
सत् का सबक पढ़ाया, चित्त में हुये समाहित।
रख सूक्ष्मरूप गुरुवर, आनन्द बन गये हो॥