तुम्हारे हैं हम तुम्हारे
तुम्हारे हैं हम तुम्हारे रहेगें, तुम्हारे लिए हैं तुम्हारे रहेगें।
तुम्हारे लिए हम, सभी कुछ सहेगें॥
हमें स्वार्थ वैभव लुभाता नहीं है।
तुम्हारे बिना कुछ सुहाता नहीं है॥
तुम्हें जो रुचेगा वही हम करेंगे॥
करें स्वर्ग की मुक्ति की कामना क्यों?
करें मान या धन की याचना क्यों?
तुम्हीं प्राण धन हों तुम्हीं को वरेगें?
हमें ज्ञान दो लक्ष्य पहचान पायें।
हमें शक्ति दो तैर कर पार जायें॥
तुम्हारे निकट हम पहुँच कर रहेगें॥
भटकते हुओं को सही हम दिशा दें।
सिसकते हुओं को फिर से हँसा दें॥
यही साधना उम्र भर हम करेगें॥
केले और धान की खेती में संगीत की स्वर लहरियाँ डाली जाये तो उनके वजन और उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती देखी गयी है। - वाङमय १९ पृ. ५.६