तुम्हारे सूत्र जीवन में
तुम्हारे सूत्र जीवन में नहीं हमने उतारे।
रहे बस खोजते निशिदिन तुम्हारे ही सहारे॥
कभी जब तेज धारों में बहाओं में घिरे हम।
हुये अक्षम पकड़ने में, सभी अक्षम सिरे हम॥
तुम्हीं ने स्नेह- संरक्षण हमें उस क्षण दिया है।
स्वयं दायित्व शिष्यों का, सदा तुमने लिया है॥
कृपा से पा गये हैं हम, सबल अविचल किनारे॥
तनिक सोचें कि हमने किस तरह जीवन जिया है।
किसी के अश्रु पोंछे क्या किसी का दुख पिया है॥
कभी देवत्व का आलोक हममें दीख पाया।
हमारे आचरण ने क्या, किसी का मन लुभाया॥
हमारे प्यार ने कितने यहाँ जीवन सुधारे॥
स्वयं अपनी समीक्षा का रखा क्या ध्यान हमने।
स्वयं परिवार का कितना किया समर्पण हमने॥
किया क्या अन्य का आदर सहज सत्कार हमने।
किया कितने सुझावों को यहाँ स्वीकार हमने॥
कभी यह प्रश्न जीवन में नहीं हमने विचारे॥
हमें हैं लोकसेवी बन सभी के मध्य जाना।
न छिप सकता कभी गुण- दोष का अपना खजाना॥
तभी जो स्वच्छ रखना है हमें प्रत्येक कोना।
कथन से पूर्व है हमको स्वयं उत्कृष्ट होना॥
जरूरी है कि हर परिजन स्वयं का मन बुहारे॥
मुक्तक- आज शपथ लेते गुरुवर, निर्देशों का ध्यान रखेंगे।
राह हमें जो बतलाई है, उस पर ही कदम धरेंगे॥