तुम करुणा सागर हो
तुम करुणा सागर हो, हमें भी प्यार नहीं है कम।
तुम पाल रहे हो हमको, तुम्हें निश्चित पा लेंगे हम॥
लोभ, मोह, संकीर्ण स्वार्थ ने, चक्कर रचे हजार।
तुमसे नेह जुड़ा तो कोई, टिकता नहीं विकार॥
यह नेह डोर पकड़े, तुम्हीं तक जा पहुँचेंगे हम॥
काल बली है, आज चल रहा, टेढ़ी- मेढ़ी चाल।
महाकाल की बात न मानें, ऐसी नहीं मजाल॥
उलटे को उलट दो तुम, तुम्हारे साथ चलेंगे हम॥
कुविचारों, दुर्भावों ने मिल, हमें किया लाचार।
सुविचारों, सद्भावों का दो, हमें नया संचार॥
पा ज्योति दान तुमसे, दिये की भाँति जलेंगे हम॥
तुम समर्थ हो करते रहते, दुनियाँ पर उपहार।
नन्हा सा, पर भावभरा मन, हम देते हैं उपकार॥
जो फर्ज हमारा है, उसे मरकर भी निभायें हम॥