गीत माला भाग ८

दीजिए गुरुवर हमें निज

<<   |   <   | |   >   |   >>
दीजिए गुरुवर हमें निज
दीजिए गुरुवर हमें निज पीर की अनमोल थाती।
धन्य जीवन हो हमारा ला सकें नवयुग प्रभाती।।
लोकहितों की राह कठिन, चलना इस पर है मुश्किल।
पीर बना जो पथ पर आये, दूर रही उनसे मंजिल।।
पीर तो पाथेय उसका जो राह आप तक ले जाती।।
बढ़ती जाती व्यथा जगत की कितने आँसू रोज बहे?
कितने शोषित तापित जीवन किस- किस की व्यथा आज कहें?
थम जाती सिसकियाँ जगत की, पीर हमारी यदि जग जाती।।
संवेदन बिन धोएँ कैसे? हम जगत का घाव गहरा।
परहित मय ही जीना मरना हो जीवन का लक्ष्य सुनहरा।।
कीजिए उर्वर हृदय प्रभु तो जल उठे शुभ संवेदन बाती।।
धन्य हो गया जीवन उसका दर्द यह गुरु का जिसे मिला।
मिल गया अनुदान अनुपम उसका ही जीवन कमल खिला।।
जग के सारे वैभव फीके सम्पदा अगर यह मिल जाती।।
आपके हम अंश गुरुवर इसी विरासत के अधिकारी।
पीते रहे जिसे जीवन भर वह पीर अब तो हो हमारी।।
स्रोत करुणा के लिख रहे हैं हम आपके यह नाम पाती।।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118