गीत माला भाग ८

देश धर्म जाति का गौरव

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देश धर्म जाति का गौरव
देश धर्म जाति का गौरव, हमें बढ़ाना है।
कुम्भकरण जो बने हुए है, उन्हें जगाना है॥
नई क्राँति दो नई चेतना, नये- नये श्रृंगार दो।
धरती के सूखे आँचल को, अपने श्रम का प्यार दो॥
भागीरथ बनकर धरती पर, सुरसरि लाना है॥
कोई भूखा कोई नंगा, दुःखी न हो कोई धरती पर।
नहीं किसी को कोई सताये, त्रस्त न हो कोई धरती पर॥
युग निर्माण हमें करना है, वचन निभाना है॥
आओ प्यारे भाई सब मिलकर आवाहन करें।
अमृत अमृत जग को बाँटे, स्वयं गरल का पान करें॥
आज जलाकर तम का पुतला, रवि चमकाना है॥
मिथ्याचारी, भ्रष्टाचारी, दुष्ट न कोई रहने पाये।
सब मिलकर संघर्ष करें, तो भ्रष्ट न कोई होने पाये॥
इन कालिख के धब्बों का, अस्तित्व मिटाना है॥
हम बदलेंगे- युग बदलेगा, स्वर्ग धरा पर आयेगा।
इन्द्र भवन भी इसके आगे, फीका सा पड़ जायेगा॥
सद्भावों का संदेशा, घर- घर पहुँचाना है॥
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