देश तो लुट गया शराब
देश तो लुट गया शराब पीने वालो से।
डगमग चालों से दारू के प्यालों से॥
शराब पीने वाले देखो कौड़ी के तीन हुए,
पागलों की भाँति हुए, बुद्धि के हीन हुए।
पास पैसा न रहा, भूखे- नंगे औ दीन हुए,
मौत है पास खड़ी, पर नशे में लीन हुए॥
आशा तो टूट रही, ये नौनिहालों से॥
नशा में चूर हुए, घूमें बनके मतवाला,
लटपट चाल से गिरता कहीं नाली- नाला।
धन बर्बाद किया, बच्चों को न देखा भाला,
घर को उजाड़ दिया जीवन नष्ट कर डाला॥
गट- गट घूँट गया रंग रस निहालों से॥
शराब के पीने से रावण की दुर्दशा भारी,
मिट गयी लंका जब शराब की बोतल ढारी।
वेद ज्ञान था भ्रान्ति भंग थी उसकी सारी,
राम के बाणों से मारा गया अत्याचारी॥
नजर से हट गया वो आज दुनियाँ वालों से॥
चाहो कल्याण वो नशा के पीने वालों,
जीवन सुखी बनाओ दुनियाँ में आने वालों॥
कुकर्मों से बचो सुख शांति चाहने वालों,
दुनियाँ को फिर दिखाओ ज्योति जगाने वालों॥
पथिक वह है जो डरता नहीं है कालों से॥