धर्म से हम नहीं रख
धर्म से हम नहीं रख सके वास्ता,
किन्तु लड़ते रहे रास्तों के लिए।
प्रेम पाठ सीखा नहीं धर्म से,
दी दुहाई घृणित हादसों के लिए॥
धर्म तो एक है सृष्टि आधार है,
नेक जीवन जीने का सार है।
भूलकर भी किसी का दुखायें न दिल,
धर्म तो छल- छलाता हुआ प्यार है॥
किन्तु हमने कंलकित किया धर्म को,
लोभ के स्वार्थ के वास्तों के लिए॥
धर्म तो जोड़ता ही रहा है सदा,
भेद तो छोड़ता ही रहा है सदा।
एक ही लक्ष्य की ओर हर राह को,
धर्म तो मोड़ता ही रहा है सदा॥
बात करते रहे शास्त्र परमार्थ की,
किन्तु लड़ते रहे स्वार्थ के ही लिए॥
धर्म के तत्त्व जानना था कठिन,
धर्म के आचरण धारणा था कठिन।
स्नेह करुणा दया शील संयम, क्षमा,
त्याग के मंत्र को मानना था कठिन।
था झगड़ना सरल सो झगड़ते रहे,
वेश या क्षेत्रीय बोलियों के लिए॥