दूर होगा अँधेरा जो
दूर होगा अँधेरा जो छाया सघन है, उजाले का कोई दीया तो जलाओ।
निशा दूर होगी, अंधेरी जो छायी, दिये से दिये को तो मिलाकर जलाओ।।
जगाओ हृदय से सद्भावनाएँ, सृजन कार्य में अब लगाओ जवानी।
जहाँ संगठित शक्ति मिलकर लगेगी, होगी वहीं युग सृजन कहानी।।
बहुत हो चुका कष्ट कठिनाई सहते, उदासी निराशा को मन से भगाओ।।
धरा चाहती है खिलें दिल की कलियाँ, संस्कारित मनुज अपना कौशल लगायें।
समय और साधन समर्पित करें हम, सृजन हेतु प्रतिभा प्रखर हम लगायें।।
स्वाध्याय, सत्संग, संयम व सेवा, परमार्थ का भाव सब में जगाओ।।
बहुत हो चुका छद्म पाखण्ड करते, मनुज उर में देवत्व भरने लगेगा।
बनेगी धरा स्वर्ग सहयोग से ही, मनुज से मनुज प्यार करने लगेगा।।
प्रखर- प्रेरणा देगी युगऋषि की वाणी, इसके लिए पुस्तक मेला लगाओ।।