दुःख निराशा के समय
दुःख निराशा के समय जब क्लेश ने बाँधा हमें।
तब स्वयं गुरु रूप में करुणेश ने साधा हमें॥
एक दिन ऋषियुग्म का मृदु प्यार जब पाया नहीं।
आँख भर आयी सगुण साकार जब पाया नहीं॥
किन्तु अगले पल किरण कौंधी हमारे सामने।
यूँ लगा जैसे कि गुरुवर आ गये कर थामने॥
शक्ति साहस दे रहे निर्देश ने बाँधा हमें॥
जब मिला संकेत गुरु के द्वार पर हम आ गये।
हर समस्या का सहज उपचार हल हम पा गये॥
और जब लौटे हृदय में सांत्वना संतोष था।
आस्था संकल्प का मन में अपरिमित कोष था॥
हर निमंत्रण में छिपे आदेश ने बाँधा हमें॥
आपके स्वर में सभी को स्नेह अपनापन मिला।
पढ़ लिया जिसने उसे प्रेरक प्रखर चिन्तन मिला॥
लेखनी मुखरित सदा करती रही जग की व्यथा।
किन्तु वाणी- वेश में पल मात्र आडम्बर न था॥
उस सरल निश्छल निराले वेश ने बाँधा हमें॥
मातृसत्ता की शरण में मौन बन जो आ गया।
वह स्वतः गुरुदेव का अनुपम अनुग्रह पा गया॥
बिन कहे हर बात हर मन की सुनी गुरुदेव ने।
शक्ति हर हनुमान को दी सतगुनी गुरुदेव ने॥
हर समय उनके सुखद संदेश ने बाँधा हमें॥
मुक्तक- गुरु व्याप्त हुए कण- कण में, शिष्यों को बोध कराते हैं।
उनके संकेतों पर चलकर हम दिव्य लक्ष्य पा जाते हैं॥