दुर्भाव बढ़े दुष्कर्म बढ़े
दुर्भाव बढ़े, दुष्कर्म बढ़े, धरती पर मुसीबत आई है।
दुर्जनता बढ़ी सज्जनता घटी,विपदा की बदरिया छाई है॥
ईर्ष्या की आग में जलने लगे, सब राग द्वेष से भरने लगे।
चिन्तायें बढ़ी मुँह बाये खड़ी, जिन्दा ही चिता जलाई है॥
विश्वास आस्था टूट गये, हम आदर्शों से रूठ गये।
तृष्णाओं और कामनाओं ने, मन की शांति गँवाई है॥
दुर्व्यसन हमारे साथ लगे, मानो मरघट के भाग जगे।
मरने से पहले ही हमने, अपने घर मौत बुलाई॥
युग प्रज्ञा हमें पुकार रही, दुर्व्यसनों से है उबार रही।
दुष्प्रवृत्तियों को छुड़वाने, युगऋषि ने राह बताई है॥
आओ दुष्प्रवृत्तियाँ छोड़ें, दुराचरण से अब मुँह मोड़ें।
इस विधि से नर ने नारायण, की गरिमा पाई है॥
संगीत केवल विनोद की वस्तु नहीं, बल्कि ऐसा चिरस्थाई आनन्द है जिसमें हमें आत्म सुख मिलता है।