गीत माला भाग ८

ध्वंस में लग गई यदि

<<   |   <   | |   >   |   >>
ध्वंस में लग गई यदि
ध्वंस में लग गई यदि मनुज शक्तियाँ,
किस तरह कर सकेंगी कि वे फिर सृजन।
मानवी शक्तियों से सृजित स्वर्ग के,
कौन पूरा करेगा? सुनहरे सपन॥
स्वर्ग रचती नहीं मंत्रवत् शक्तियाँ,
मात्र भौतिक सुखों की अभिव्यक्तियाँ।
कब सृजन कर सकी भोग की वृत्तियाँ,
छद्म है वासना पूर्ण अनुरक्तियाँ॥
शक्तियाँ भोग में वासना में लगीं,
तो सुनिश्चित मनुज शक्तियों का पतन॥
शक्तियाँ बट गयीं राग में द्वेष में,
और थोथे अहं तृष्टि आदेश में।
हर समय हर जगह स्वार्थ के वेश में,
मात्र शोषक कि पुरुषार्थ परिवेश में॥
शक्तियाँ स्वार्थवश संकुचित यदि हुईं,
फिर मनुज ही बुनेगा मनुज का कफन॥
स्नेह सौहार्द्र समता पलेंगे कहाँ,
और करुणा क्षमाश्रु झरेंगे कहाँ।
त्याग तप को कि फिर प्रश्रय मिलेगा कहाँ,
और सर्वार्थ को आत्म आश्रय कहाँ॥
यदि मनुज की मनोभूमि सँवरी नहीं,
हो सकेगा कहाँ स्वर्ग का अवतरण॥
शक्तियाँ यदि लगे आत्म निर्माण में,
शक्तियाँ यदि जुटे लोक- कल्याण में।
लोक- मंगल महायज्ञ अनुदान में,
व्यष्टि के सृष्टि के श्रेष्ठ उत्थान में॥
बस धरा पर सँवरने लगे स्वर्ग फिर,
देववत् दिव्यतम हो मनुज आचरण॥
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118