माँ! हृदय में बस तुम्हारे
माँ! हृदय में बस तुम्हारे, स्नेह का संबल लिए।
जल रहे हैं आँधियों में, रात- दिन, अनगिन दिए॥
धन्य हैं माँ हम तुम्हारी दिव्य ममता में नहा।
वेदना मन की मिटी है, बह गया दुःख अनकहा॥
कष्ट काँटों की नहीं अनुभूति अब होती हमें।
अपने दुःख- दर्द दारुण इस तरह सारे पिए॥
है न इच्छा स्वर्ग- सी सुविधा यहाँ पाएँ कभी।
कामना है मार्ग की रोकें न दुविधाएँ कभी॥
एक क्षण भी अब न बिल्कुल व्यर्थ जाने पाएगा।
सार्थक हो जाएँगे, जो दिन यहाँ हमने जिए॥
अब मिशन की ओर सारा विश्व खिंचता आ रहा।
शान्ति- शीतलता तुम्हारी छाँह में जग पा रहा॥
चल रहे हम भी, हमें जिससे न पश्चाताप हो।
सोचकर संतोष हो, जो कार्य हैं हमने किए॥
भावना- भीगे हुए मन हैं, उमंगों से रंगे।
चेतना पूरित चरण हैं, प्रेरणाओं में पगे॥
कार्य में गति और लय है, सौम्य- सा संगीत है।
लोकमंगल भाव से परिपूर्ण हैं सबके हिए॥