गीत माला भाग १२

मन मन्दिर में सदा विराजे

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मन मन्दिर में सदा विराजे

मन मन्दिर में सदा विराजे, झाँकी ये श्रीराम की।
देते जो नित नई प्रेरणा, त्याग और बलिदान की॥

रहा जिन्हें सेवा- व्रत प्यारा, रामकाज हित जीवन हारा।
सियराम मय सब जग जाना, कण- कण में प्रभु को पहचाना॥
जिनके वक्ष स्थल में अंकित, झाँकी युग श्रीराम की॥

अनुपम ब्रह्मचर्य व्रत पाला, वन्दनीय आदर्श निकाला।
इतना ऊँचा लक्ष्य बनाया, जन- जन में देवत्व जगाया॥
नरतन पाकर देव बना जो, उसने बड़ा महान की॥

कर्मयोग की सिद्धि निराली, अजर- अमर कर देने वाली।
अविचल भक्ति सदा उपकारी, सरल हृदय अतुलित बलधारी॥
प्रज्ञा पुत्रों ने अंहकार की, लंका राख समान की॥

विमल ज्ञान रवि के उजियारे, रामराज्य के हैं रखवारे।
जब- जब अपनी ज्ञान सम्भाली, महाक्रांति क्षण में कर डाली॥
संजीवनी लिये हैं कर में, सकल विश्व कल्याण की॥

संगीत ही क्या, समस्त सृष्टि क्रम में एक अपूर्व ताल व्यवस्था अर्थात् काल की नियमितता दृष्टिगोचर होती है।
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