मिले विरासत में गुरुवर से
मिले विरासत में गुरुवर से, जो दायित्व निभायेंगे।
वही वसीयत में गुरुवर की, अमित शक्तियाँ पायेंगे॥
हम सबने अध्यात्म विरासत में गुरुवर से पाया है।
उसके प्रति आशा का मन में, अनुपम भाव जगाया है॥
अखिल विश्व के हर संकट का समाधान उससे होगा।
जो जन हुआ अशक्त, पुनः वह प्राणवान इससे होगा॥
जो आस्था से रहित जनों में, यह विश्वास जगाएँगे।
गुरु ने जन- जन के हित सेवा की शैली अपनाई थी।
लेकिन आत्म- नियन्त्रण वाली अपनी डगर बनाई थी॥
अपने लिए कठोर, अन्य के हित उदार बन जाते थे।
सबके लिए प्रेम का सागर वह अपार बन जाते थे॥
गुरुसत्ता के सूत्रों को जो जीवन में अपनाएँगे।
नर से नारायण बनने का गुरु ने मार्ग दिखाया है।
होता आत्मोन्नयन स्वयं का कैसे, स्वयं सिखाया है॥
संकल्पित हो स्वयं चलेंगे जो उनके पदचिन्हों पर।
यूँ अपना उत्थान करेंगे जो श्रद्धापूरित होकर॥
और अन्य भ्रमितों को प्रेरित कर सत्पथ पर लाएँगे।
हम जीते हैं जहाँ, भ्रांतियाँ वहाँ अनेकों फैली हैं।
विकृतियों से हुई हवाएँ, अब घनघोर विषैली हैं॥
अतः बाँटकर प्यार हमें विश्वास बढ़ाना ही होगा।
गुरु का सिद्ध रसायन जन- जन तक पहुँचाना ही होगा॥
घर- समाज में जो भी सुखप्रद वातावरण बनाएँगे॥
मुक्तक- तपोनिष्ठ से मिली विरासत, जीवन में अपनायेंगे।
श्रद्धा के इस महापर्व में, गुरु दक्षिणा चुकायेंगे॥