यह घड़ी है निर्माताओं
यह घड़ी है निर्माताओं, नवयुग के निर्माण की॥
आओ नवयुग की प्रतिमा में, करें प्रतिष्ठा प्राण की॥
महाकाल ने परिवर्तन का, क्रम फिर से दोहराया है।
इस धरती पर स्वर्ग सृजन का, संदेशा पहुँचाया है॥
नव निर्माण हो सके ऐसा, वातावरण जुटाया है।
निर्माताओं के प्राणों में, फिर तूफान उठाया है॥
नहीं उपेक्षा करना है अब, सृष्टा के आवाहन की॥
सृजन स्वेद की सरिताओं में, फिर तूफान उठाया है।
जन मानस को सृजन सुधा का, फिर से पान कराना है॥
युग- युग से इस तृषित धरा की, फिर से प्यास बुझाना है।
इस धरती पर हमें प्रीति की, पावन फसल उगाना है॥
मुखर हो रही नई ऋचाएँ, जन मंगल के गान की॥
यही समय है मनुज धरा को, स्वर्ग समान बनायें हम।
और सुप्त देवत्व मनुज का, जन- जन बीच जगाएँ हम॥
मानवता का पाप पतन से, पीछा चलो छुड़ायें हम।
सृजन शिखर पर नैतिकता की, धर्म ध्वजा फहरायें हम॥
नई कथा गढ़ें चलो हम, मानव के उत्थान की॥
सद्प्रवृत्तियाँ मुखर हो सके, मानव के आचारों में।
और श्रेष्ठ चिंतन की ही, छाया मनुज विचारों में॥
दया क्षमा करुणा संवेदन, हो मानव उद्गारों में।
हो न कहीं नीलाम आस्था, श्रद्धा फिर बाजारों में॥
मानव में प्राण प्रतिष्ठा, भावों के भगवान की॥